छठ पूजा | Chhath Puja
छठ पूजा |
छठ पूजा बिहार और झारखंड का सबसे बड़ा पर्व है और ये बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जैसा की बिहार के लोग कई दूसरे राज्यों और देशों में फैले हुए हैं , छठ पूजा की ख्याति कई जगहों पर फैली हुई है। यह त्योहार भारत के बिहार और झारखंड के अलावा उत्तराखंड क्षेत्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान मुंबई, नेपाल , मॉरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना सहित अन्य क्षेत्रों में मनाया जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, मकाऊ, जापान और इंडोनेशिया के कुछ जगहों पर भी इसे मनाते हैं।
छठ पूजा में छठी मैया और भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इसमें उगते और ढलते हुए सूर्य की पहली और आखिरी किरण को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है।
छठ पूजा के स्वास्थ्य लाभ:
छठ पूजा के दौरान उपवास की प्रक्रिया मन और शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करती है। नदी या किसी भी जल निकाय में खड़े होने से आपके शरीर से ऊर्जा का निकलना कम हो जाता है।
ऐसा माना जाता है कि ये अनुष्ठान शरीर और मन को डिटॉक्स करते हैं और मानसिक शांति प्रदान करते हैं। यह प्रतिरोधक छमता को बढ़ाता है और अन्य सभी नकारात्मक भावनाओं को कम करता है।
छठ पूजा कब मनाया जाता है :
छठ पूजा हर साल दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। ये चार दिनों का महापर्व होता है। इस साल ये पर्व 18 नवम्बर 2020 से 21 नवम्बर 2020 तक मनाया जायेगा।
छठ पूजा कैसे मनाया जाता है:
पहले दिन को "नहाय खाय" कहा जाता है।जैसा की मैंने बताया इस दिन को 2 समय का भोजन करते हैं। दोनों समय का भोजन सात्विक होता है जिसको बनाने में सेंधा नमक और घी का उपयोग किया जाता है। इस दिन सुबह सूर्य भगवान को जल देने के बाद ही दिन का पहला भोजन करते हैं और उसमे चने की दाल, लौकी की छौंक सब्जी और चावल बनाना अनिवार्य है। शाम के दूसरे भोजन में आप कोई भी सब्जी बिना लहसन और प्याज़ के बना सकते हैं।
दूसरा दिन:
गुड़ की खीर |
दूसरे दिन को "खरना" कहा जाता है। इस दिन को सिर्फ एक समय का भोजन शाम को किया जाता है। खरना के दिन शाम को सूर्य अस्त होने से पहले एक प्रसाद बनता है जो व्रती बनाती है। सूर्य अस्त होने से पहले उनकी पूजा करके प्रसाद बनाना शुरू किया जाता है जो सूर्य अस्त से पहले बन जाना चाहिए।उसी प्रसाद की पूजा करके व्रती (जो इस छठ व्रत को करते हैं ) इस प्रसाद को गृहण करते हैं।प्रसाद में गुड़ की खीर और रोटी बनाई जाती है। व्रती के खाने के बाद ही ये प्रसाद घर के सभी सदस्यों को दिया जाता है।
तीसरा दिन:
तीसरे दिन को "संध्या अरग " कहा जाता है। इस दिन सूर्य भगवान को सूर्य अस्त के समय अरग (जल ) दिया जाता है। इस दिन को व्रती पुरे दिन का उपवास रखते हैं और पानी भी नहीं पीते हैं। शाम को भगवान सूर्य को जल देने की खास प्रक्रिया है जिसमे एक सूप में अपने अपने हैसियत के अनुसार जितने फल चढ़ा सकते हैं उतने रख कर , उसको दोनों हाथों में लेकर , पानी के अंदर खड़े होकर अरग दिया जाता है। इसमें एक खास प्रसाद "ठेकुआ" बनाना अनिवार्य होता है।
ठेकुआ |
सूप पर चढ़ाने वाले अनिवार्य सामग्री हैं :
नारियल
गागल
अदरक (पत्ते वाला अन्यथा सूखा)
हल्दी (पत्ते वाला अन्यथा सूखा)
सुथनी
गन्ना
केला
पान का पत्ता
सुपारी
कचोनिया
सूखे मेवें जैसे की बादाम, किसमिश, मखाना
अलता का पत्ता
धागा
इसके अलावा आप सूप पर कोई भी मौसमी फल चढ़ा सकते हैं जैसे की :
अनार
अमरूद
सेब
संतरा
कच्ची मूंगफली
मूली
गाजर(पत्ते वाले)
अनानास
जो भी फल आप लाएं है सबका भोग लगाना जरूरी है।
चौथा दिन:
चौथे दिन को "सुबह का अरग " कहा जाता है। इस दिन सुबह सूर्य उदय के समय सूर्य भगवान को अरग दिया जाता है। इस दिन अरग देने की प्रक्रिया वही है जो शाम को देने के थी। अरग देने के बाद वृती अपने उपवास का समापन अदरक का टुकड़ा खा कर करते हैं। उसके बाद 4 दिनों के छठ का समापन हो जाता है। खाने में उस दिन भात (चावल ) और फुलौरा बनाया जाता है। बिहार में कई जगहों पर अलग -2 तरह का खाना बनता है , मैंने अपने यहाँ आरा जिले के बारे में लिखा है।
छठ के कुछ गीत:
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ReplyDeleteJai Chhathi Maiya
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